Wednesday, December 7, 2016

आसान नहीं रहा 'अम्मा' का सफर


अभिनेत्री से राजनेता बनीं जयललिता चार बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुईं। मगर उनका यहां तक का सफर आसान न था। हालांकि वे वक्त की सभी विपरीत धाराओं को मात देते हुए अपने समर्थकों के मन में ऐसे बस गईं कि उन्हें 'अम्मा' का उपनाम मिल गया। राज्य की राजनीति में वह एक अहम प्रतीक बन गईं और खुद के लिए अम्मा के अलावा पुरातची थलाइवी (क्रांतिकारी नेता) और आयरन लेडी जैसे नाम भी हासिल किए। वैसे तमाम लोग राज्य पर सख्ती से शासन करने को लेकर उनकी आलोचना करते रहे हैं लेकिन उनके समर्थकों को उनकी ऐसी शैली पर भी कोई एतराज नहीं रहा। उनके पास गजब का संचार कौशल था, जिसके दम पर वह जनता से बेहतरीन संवाद करती थीं।



अपनों के साथ-साथ विरोधियों से भी लोहा लेते हुए लौह महिला बन गईं जयललिता
उनका जन्म 24 फरवरी, 1948 को कर्नाटक के एक आयंगर परिवार में हुआ था। बचपन में उन्हें कोमलावल्ली नाम दिया गया। मगर बाद में उन्हें जयललिता के रूप में आधिकारिक नाम मिला। यह 1950 के दशक की बात है, जब वह अपनी मां के साथ चेन्नई रहने चली गई थीं। उनकी मां वहां अभिनेत्री थीं। शर्मीली सी लड़की जयललिता पढ़ाई में बहुत होनहार थीं और बेंगलूरु के बिशप कॉटन गल्र्स हाई स्कूल और चेन्नई के चर्च पार्क प्रजेंटेशन कॉन्वेंट में वह टॉपर रही थीं।
हालांकि बचपन में उनका परिवार साधन संपन्न था मगर बाद में हालात बदलते गए। परिवार के भरण पोषण के लिए उनकी मां को अभिनय का पेशा अपनाना पड़ा और बाद में 16 साल की उम्र में किशोर जयललिता को भी अभिनय के पेशे का रुख करना पड़ा। जयललिता अविवाहित रहीं और अपने भाई के परिवार और अन्य रिश्तेदारों के भी बहुत करीब नहीं रहीं। इस बीच वह अपनी सहेली शशिकला और उनके परिवार (जिनकी वजह से वह कई बार मुश्किलों में भी फंसी) के काफी नजदीक रहीं। बतौर कलाकार उनकी पहली कन्नड़ फिल्म सुपरहिट रही और 1965 में आई उनकी पहली तमिल फिल्म 'वेन्निरा आदाई' भी जबरदस्त कामयाब रही थी। कई दशकों तक उन्होंने तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषाओं की 140 फिल्मों में काम किया। उनके खाते में हिंदी में इज्जत और अंग्रेजी में एपिस्टल नाम की  फिल्में भी दर्ज हैं।
एम जी रामचंद्रन (एमजीआर) के साथ फिल्मों में उनकी जोड़ी बहुत सराही गई। कालांतर में एमजीआर ने राजनीति का रुख किया और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बन गए। असल में यह एमजीआर ही थे, जिन्होंने जयललिता को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। उन्हें अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) में प्रचार सचिव बनाया गया। चूंकि वह खुद ब्राह्मण थीं, लिहाजा द्रविड़ पार्टी में तमाम लोगों के लिए वह स्वीकार्य नहीं थीं। एमजीआर की सरपरस्ती में समय के साथ एक राजनेता के तौर पर वह परिपक्व होती गईं और 1984 में राज्यसभा के लिए चुनी गईं। जब एमजीआर बीमार पड़े और अमेरिका में इलाज करा रहे थे तो उस समय अन्नाद्रमुक के सामने 1984 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव लडऩे की चुनौती थी। जयललिता ने इस चुनौती को स्वीकार किया और एमजीआर की गैरमौजूदगी में अन्नाद्रमुक-कांग्रेस गठबंधन की कमान संभाली और जबरदस्त जीत हासिल की। वर्ष 1987 में एमजीआर के निधन के बाद अन्नाद्रमुक दोफाड़ हो गई, जिसमें एक धड़े की अगुआई जयललिता कर रही थीं तो दूसरे पक्ष की कमान एमजीआर की विधवा जानकी रामचंद्रन के हाथ में थी। Read more Click Here

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